Diya Jethwani

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लेखनी प्रतियोगिता -16-Sep-2022.... विचित्र मुकदमा..

जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र.. 
माँ की गोद से अधिक तीर्थ कौन पवित्र....।। 


एक न्यायालय में एक बहुत ही विचित्र केस आया...। आज तक पारिवारिक मुद्दों... जमीन जायदाद की लड़ाई.. तलाक.. मारपीट... के ना जाने कितने किस्से हमने सुने होंगे..। लेकिन एक ऐसा अद्भुत केस आया... जिसपर न्यायाधीश भी उलझन में पड़ गए थे..। पहली बार उनके लिए भी फैसला लेना मुश्किल हो गया था...। 


एक 60 साल के व्यक्ति ने अपने 75 साल के भाई पर एक मुकदमा किया.. । 

मुकदमा कुछ यूँ था की.... 60 वर्षीय व्यक्ति ने न्यायधीश के समक्ष ये कहा की मेरा बड़ा भाई जो स्वयं 75 वर्ष का हो चुका हैं और बुढ़ा भी हो चुका हैं... इसलिए अब वो मेरी माँ जो की 95 वर्ष की हैं उनकी ठीक से देखरेख नहीं कर सकता...। अत: अब माँ की जिम्मेदारी मुझे सौंप दी जाए...। 

इस पर 75 वर्षीय व्यक्ति ने अपनी दलील पेश की.... माना मैं बुढ़ा हो चुका हूँ... लेकिन अभी भी इतना तो काबिल हूँ की मैं अपनी माँ की अच्छे से सेवा कर सकूँ...। इसलिए माँ मेरे साथ ही रहेगी...। हाँ अगर माँ कहे की उसे मेरे साथ रहने में कोई तकलीफ हैं तो तु खुशी खुशी उसे ले जा सकता हैं...। 



इस पर छोटा भाई बोला :- माना आप अभी भी काबिल हैं... लेकिन वर्षों से माँ आपके ही साथ हैं...। मैं वर्षों तक यहां था ही नहीं... काम के लिए बाहर देश चला गया था... लेकिन अब चूंकि मैं वापस आ गया हूँ तो... मुझे भी माँ की सेवा करने और उनके साथ रहने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए...। 

इस पर न्यायधीश बोले :- तुम दोनों भाई साथ ही क्यूँ नहीं रह लेते..। 

तब बड़ा भाई बोला :- ये सालों बाद आया हैं... हम भाईयों में तो कोई रंजीश नहीं हैं लेकिन हमारे बच्चों की आपस में नहीं बनतीं... इस पर साथ रहने से हमारे रिश्ते में भी दरार पड़ जाएगी...। 

न्यायधीश :- ठीक हैं तो दोनों 15 - 15 दिन माँ को अपने साथ रख लो...। 

नहीं महोदय...इससे माँ को तकलीफ होगी...। छोटा भाई दूसरे शहर रहता हैं...। बार बार सफर से माँ को परेशानी होगी...। हम उसे कोई तकलीफ नही दे सकते...। 

काफी देर की मशक्कत के बाद भी जब कोई समाधान नहीं निकला तो न्यायधीश ने माँ से ही कहा :- बेहतर होगा... अगर आप ही बताए की आपको किसके साथ रहना हैं..? 


इस सवाल पर वो औरत बोलीं :- मेरे लिए तो मेरे दोनों ही बेटे बराबर हैं... मैं किसी एक का पक्ष लेकर दूसरे को तकलीफ कैसे दे सकतीं हूँ...। आप न्यायधीश हैं... आप जो भी न्याय करेंगे मैं खुशी खुशी मान लूंगी...। 


बहुत देर तक विचार विमर्श करने के बाद न्यायधीश ने उस औरत की कस्टडी छोटे बेटे को सौंप दी...। 


फैसला आने पर सभी की आंखों में खुशी के आंसू थे..। बड़े भाई ने छोटे भाई को गले से लगाकर बधाई दी..लेकिन उसकी आँखों से बह रहें आंसू खुशी और गम़  दोनों बयां कर रहे थे...। 


फैसला सुनाने के बाद न्यायधीश बोले :- मैं पिछले बीस सालों से इस कुर्सी पर हूँ... मैंने भाई भाई को लड़ते देखा हैं...। माँ तेरी है.... माँ तेरी हैं... कहते देखा हैं..। जायदाद के लिए अपनों को वृद्धाश्रम में छोड़ते देखा हैं... यहाँ तक की माँ बाप की हत्या करने वालो को भी देखा हैं... लेकिन माँ के लिए इस तरह लड़ते दो भाईयों को कभी नहीं देखा हैं...। आज का ये मुकदमा इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा..। आपकी माँ ने सच में आपको बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं..। 



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13 Comments

Mithi . S

18-Sep-2022 04:44 PM

Bahut achhi rachana

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Chetna swrnkar

18-Sep-2022 02:25 PM

Bahut achhi rachana

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Chirag chirag

17-Sep-2022 06:22 PM

Nice post 👍

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